कर्ज़ सिंदूर का

कर्ज़ सिंदूर का।


दूध का कर्ज़ा बाकी है,बाकी है घर का भाड़ा अभी
भादो की ना रात बीती बाकी है पूस का जाड़ा भी
पाई पाई जोड़ जोड़ जल्दी ही सब लौटा दुंगा
अगले जन्म में हे प्रिये तेरा भी कर्ज़ चुका दूंगा।।

वादा किया था तुझसे जो है सबकुछ मुझको याद अभी
थोड़ी सी मोहल्ल़त दे दे, मैं करता हूँ फरियाद अभी
समझ मेरी लाचारी को,मजदूरी कर लौटा दूंगा
अगले जन्म में हे प्रिये तेरा भी कर्ज़ चुका दूंगा।।

हालत ग़र ऐसी ही रही,कि फिर से सबकुछ लुट गया
सहते सहते लू के थपेड़ो से गर फ़िर से टूट गया
बन जाऊंगा नौकर मैं, घर की रखवाली कर दूंगा।
अगले जन्म में हे प्रिये तेरा भी कर्ज़ चुका दूंगा।।

बातों से जो सुना नहीं तो पैरों से धक्का देना
छोटी सी भी भूल चुक पर मुझको सदा सज़ा देना
कर देना सर धड़ से अलग,मैं अपना शीश झूका दूंगा
अगले जन्म में हे प्रिये तेरा भी कर्ज़ चुका दूंगा।।

कवि:- अमित प्रेमशंकर
एदला,सिमरिया,चतरा(झारखण्ड)
वर्तमान पता:- बोरिवली, मुंबई
दूरभाष:- ९९८७५६३१०८

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18 Comments

Waah waah bahut hi Behtreen rachna

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Nitish bhardwaj

25-Jan-2022 09:59 AM

वाह बहुत खूब बेहतरीन लाजवाब रचना

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धन्यवाद आपका 🙏

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Akassh_ydv

25-Jan-2022 09:48 AM

भादो की न रात बीती बाकी है पूस का जाड़ा भी.... जनवरी फरवरी वाले साहित्यकार शायद ही भादो की कालिमा और पूस के जाड़े को महसूस कर पाएं....एक बेहतरीन रचना सौ में पूरे सौ अंक अर्जित करने वाली

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बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री 🙏🙏🌺

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